नई दिल्ली। हार्ट अटैक या स्ट्रोक के मरीजों को दी जाने वाली जीवनरक्षक दवा हेपेरिन के दाम 50 % बढ गए हैं। दवाओं की कीमतों पर फैसला लेने वाली संस्था नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने हेपेरिन दवा के दाम बढ़ाने को मंजूरी दी है।
इस दवा के दाम बढऩे का कारण चीन से आने वाले कच्चे माल में रुकावट बताया गया है। हालांकि, यह मंजूरी फिलहाल दिसंबर तक के लिए है। यह पहली दवा है, जिसके दाम देश में चल रहे कोविड संकट के बीच बढ़े हैं। कोविड इलाज के प्रोटोकॉल के अनुसार, गंभीर मरीजों को इसका इंजेक्शन देना पड़ता है।
सूत्रों का कहना है कि हाइड्रोक्लोरोक्वीन का जो एपीआई 8 हजार रुपए किलो आता था, उसका रेट 80 हजार रुपये किलो पहुंच गया है। इसी तरह आज भी पैरासिटामॉल का एपीआई 450 रुपये किलो मिल रहा है, जो तीन-चार महीने पहले 250 रुपये किलो मिलता था।
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चूंकि दवा बनाने के लिए जरूरी ज्यादातर कच्चा माल भारत चीन से मंगाता है, ऐसे में दवा कंपनियां दबाव में हैं. भले ही सरकार ने अभी सिर्फ एक कंपनी की दवा के दाम बढ़ाने की इजाजत दी है, लेकिन भारी डिमांड और कच्चे माल की धीमी सप्लाई की वजह से दूसरी कंपनियों ने भी दाम बढ़ाने की इजाजत मांगी है। इसके पीछे भारत-चीन सीमा तनाव से ज्यादा चीन में फैला कोरोना वायरस है। चीन के वुहान शहर में दिसंबर में ही हालात खराब होने की खबरें आने लगीं।
दवा बनाने के लिए कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल होने वाले एपीआई ज्यादातर इस इलाके के आसपास से ही आते हैं। कोविड संकट के चलते चीन में ज्यादातर केमिकल कंपनियों ने अपनी लोकल डिमांड पर फोकस करना शुरू कर दिया। परिणाम यह हुआ कि डिमांड के हिसाब से कच्चा माल देशों को नहीं पहुंच सका। धीरे-धीरे यह वेटिंग बढ़ती गई और रिजर्व कच्चा माल भी खप गया।
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