Last Updated on December 25, 2021 by The Health Master
Artificial Colour के ये नुक्सान आपको जरूर जानने चाहिए
आजकल के लाइफस्टाइल में माता-पिता बच्चों के व्यवहार को लेकर ज्यादा चिंतित रहते हैं. अक्सर ये देखने को मिला है कि बच्चे बहुत जल्दी चिड़चिड़े हो जाते हैं.
उन्हें बहुत गुस्सा आता है, वो जरा सी बात पर नाराज हो जाते हैं और ये नाराजगी काफी लंबे समय तक बनी रहती है.
बच्चों के ऐसे बिहेवियर को लेकर माता-पिता ये मान लेते हैं कि ये उग्र व्यवहार (Violent Behaviour) सामान्य चिड़चिड़ापन (General Irritability) है, लेकिन जब समय के साथ-साथ ये बढ़ता जाता है तो उन्हें इसके लिए
डॉक्टर की सलाह भी लेनी पड़ती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी वजह बच्चों की फूड हैबिट्स भी हो सकती हैं?
दरअसल, बच्चे जो कैंडी, चॉकलेट, मार्शमेलो, कॉटन कैंडी या फास्ट फूड खाते हैं. उनमें मिला आर्टिफिशियल कलर (Artificial colors) भी उनके उग्र व्यवहार (Violent Behaviour) की वजह हो सकता है.
एनबीसी न्यूज में छपी न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के उताह प्रांत की रॉय सिटी में रहने वाले स्नो परिवार को भी इस समस्या से जूझना पड़ा लेकिन उन्होंने अपने बच्चे की फूड हैबिट्स में कुछ बदलाव कर अच्छे नतीजे प्राप्त किए.
दरअसल. स्नो परिवार के सबसे छोटे बच्चे इवान (पहली क्लास का छात्र) की शैतानियां लगातार बढ़ती जा रही थी, वो जरा सी बात पर गुस्सा हो जाता था.
इसी कारण उसके दोस्त भी नहीं बनते थे. अगर माता-पिता उसे समझाते तो वह और उग्र हो जाता. इसी वजह से पेरेंट्स घर में किसी तरह की पार्टी या सेलीब्रेशन भी नहीं कर पाते थे.
इवान की मां एमिली ने तो इनाम रख दिया था कि जिस दिन इवान अच्छे से रहेगा, उसे फेवरेट रेड कैंडी मिलेगी. हालांकि, वो कभी भी इनाम ले नहीं पाया.
पेरेंट्स को उसकी वीकली थेरेपी भी करानी पड़ी. लेकिन अभी पिछले कुछ टाइम से इवान के बिहेवियर में आश्चर्यजनक बदलाव देखने को मिला. अब उसे दवा और वीकली थेरेपी की जरूरत भी नहीं पड़ती.
ये सब संभव हुआ है आर्टिफिशियल कलर (artificial colors) वाले फूड प्रोडक्ट को खाने पर पाबंदी लगाने के बाद.
इवान की मां एमिली बताती हैं, ‘कई तरह के न्यूरोसाइकोलॉजिकल टेस्ट (neuropsychological test) और हजारों डॉलर के खर्च के बावजूद वो नतीजे नहीं मिल पाए, जो केवल डाइट में बदलाव करने के 4 सप्ताह में सामने आए.’
पूरे अमेरिका में उठी आवाज
पूरे अमेरिका में अब लोग बच्चों के खाने से आर्टिफिशियल कलर्स हटाने का समर्थन करने लगे हैं. सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में डाई-फ्री डाइट (dye-free diet) ग्रुप बन गए हैं.
कई में 10 हजार मेंबर हैं. कैलिफोर्निया से डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदबॉब वीकोवस्की (Bob Wieckowski) एक बिल लेकर आए हैं, जिसमें खाने की चीजों पर चेतावनी देने की सिफारिश की है. 2023 से इसके लागू होने की उम्मीद है.
उन्होंने अमेरिकी एनवायरनमेंट हेल्थ हजार्ड असेसमेंट ऑफिस (US Environmental Health Hazard Assessment Office) की स्टडी का हवाला देते हुए दावा किया है कि फूड कलर्स (food colors) बच्चों पर असर करते हैं. इसलिए पेरेंट्स को जानकारी जरूर दी जानी चाहिए.
यह स्टडी 1970 से बड़े पैमाने पर जारी थी. विश्लेषण से यह पता चला कि खाने के रंगों और बच्चों के बिहेवियर में संबंध हैं. दरअसल, अमेरिकी बच्चों व किशोरों में एडीएचडी अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी सिंड्रोम (Attention deficit hyper activity syndrome) के मामले 1997 में 6.1% से बढ़कर 2016 में 10.2% हो गए हैं. इसी को समझने के लिए स्टडी की गई.
यूरोप में हैं लेबलिंग का नियम
आपको बता दें कि यूरोप में भी बच्चों की एक्टिविटी और अटेंशन स्पैन (ध्यान देने की अवधि) पर असर डालने वाले कलर वाले प्रोडक्ट्स पर स्पष्ट लेबलिंग का नियम है.
इसके चलते प्रोडक्ट्स बनाने वाले खाने की चीजों में सिंथेटिक कलर (synthetic color) की जगह नेचुरल कलर जैसे ब्लैककरंट (Blackcurrant) और स्पिरुलिना कंसंट्रेट (Spirulina Concentrate) इस्तेमाल करने लगे हैं.
अमेरिका में भी फूड सिक्योरिटी ग्रुप ऐसी ही मांग कर रहे हैं. इसलिए वो एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) से खाने में कलर के यूज को बैन करने या खतरों से आगाह करने वाली नीति बनाने पर दबाव डाल रहे हैं.
क्या कहते हैं जानकार
यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन में पीडियाट्रिक एंड एनवायरमेंटल हेल्थ साइंसेज और सिएटल चिल्ड्रन रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रोफेसर डॉ शीला सत्यनारायण (Dr. Sheela Sathyanarayana)बताती हैं, ‘आर्टिफिशियल कलर वाले फूड आइटम्स में एडिटिव (additives) और बड़ी मात्रा में शुगर होती है, जो बच्चों के बिहेवियर पर असर डालती है.
अमेरिकी सेंटर फॉर साइंस इन द पब्लिक इंट्रेस्ट (Center for Science in the Public Interest) में सीनियर साइंटिस्ट और कैलिफोर्निया के बिल की को-मूवर (co-mover) लिसा लेफर्ट्स (Lisa Lefferts) के मुताबिक ये विटामिंस या पोषक तत्व नहीं हैं.
सिर्फ कॉस्मेटिक्स हैं, फूड प्रोडक्ट्स में इनका यूज बच्चों को अट्रैक्ट करने के लिए होता है. इसलिए वह सालों से एफडीए (Food and Drug Administration) से इन पर रोक लगाने की वकालत कर रही हैं.
Frozen Food: फ्रोजन फूड के ये बड़े नुक्सान: Must know
Benefits of using Sodium Hyaluronate on Skin
Food Mismatch: किन चीजों के साथ क्या नहीं खाना चाहिए: Must…
Metabolism: बॉडी का मेटाबॉलिज्म बढ़ाएं, वजन भी घटेगा: 5 easy Tips
Beware of the effects of Blue Light on your Skin
Folic Acid: बॉडी को फोलिक एसिड की कितनी है जरूरत, किन चीजों से करें…
Caution against the “misuse” of Antibiotics: Experts
Natural Antibiotics: ये नेचुरल एंटीबायोटिक्स जरूर होने चाहियें घर में: Must…
Diet drinks, soda might be harmful for the fertility
Tips for preventing spread of C-19 through tears: Doctor
For informative videos on consumer awareness, click on the below YouTube icon:
For informative videos by The Health Master, click on the below YouTube icon:
For informative videos on Medical Store / Pharmacy, click on the below YouTube icon:
For informative videos on the news regarding Pharma / Medical Devices / Cosmetics / Homoeopathy etc., click on the below YouTube icon:
For informative videos on consumer awareness, click on the below YouTube icon: