Last Updated on April 8, 2021 by The Health Master
लगातार बिगड़ रहे रिश्तों के कारण चीन अब देश के फार्मा उद्योग को सीधे तौर पर हिट करने की कोशिश में लगा है। चीन ने दवाइयों में प्रयोग होने वाले रा मटीरियल (API)को दोगुना तक महंगा कर दिया है।
फार्मा से संबंधित 90 प्रतिशत रा मटीरियल चीन से सप्लाई हो रहा है। ऐसे में अब कंपनियों ने भी दवाइयों के दाम बढ़ा दिए हैं। इससे लोगों पर बोझ बढ़ गया है।
पिछले पाच महीने में आम प्रयोग होने वाली पैरासिटामोल साल्ट की कीमत में 103 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह कई अन्य दवाइयों के साल्ट, दवाइया पैक करने में प्रयोग होने वाले रैपर की कीमतों में भारी उछाल आया है। भारत में फार्मा उद्योग की बहुत बड़ी मार्केट है। मजबूरन फार्मा कंपनियों को महंगा सामान खरीदना पड़ रहा है।
फार्मा मेडिसन एसोसिएशन के महासचिव अमित कपूर ने बताया कि मौजूदा समय में हालत यह है कि आम प्रयोग होने वाले साल्ट भी नहीं मिल पा रहे हैं। जो लोग साल्ट की सप्लाई कर रहे है, वह बहुत महंगे दाम पर बेच रहे हैं।
पैरासिटामोल साल्ट जो 320 रुपये किलो मिलता था, वह अब 103 गुना बढ़कर 650 रुपये किलो हो गया है। इसी तरह निमुस्लाइड 700 रुपये से बढ़कर 1400 रुपये प्रति किलो हो गया है। इसके अलावा दवाइयों की पैकिंग में काम आने वाले पीवीसी बहुत ज्यादा महंगे मिल रहे हैं।
गत्ते के दाम 25 प्रतिशत और एल्युमिनियम के दाम में 20 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा पेन किलर में प्रयोग होने वाले इनग्रेडिएंट्स को भी चीन की ओर से लगातार महंगा करके बेचा जा रहा है। मेक इन इंडिया में अभी लगेगा समय
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फार्मा मेडिसन एसोसिएशन के प्रधान डा. रवि धवन ने कहा कि मौजूदा समय में अमृतसर में 27 फार्मा यूनिट हैं। फार्मा उद्योग चीन पर निर्भर है। मगर दवाइयों में प्रयोग होने वाले बहुत सारे केमिकल लगातार महंगे हो रहे हैं।
भारत में फिलहाल इतनी प्रोडक्शन नहीं है कि माग के मुताबिक सप्लाई हो सके। इस कारण महंगा मटीरियल खरीदना पड़ रहा है। हालात यह बन गए है कि विदेशों में एक्सपोर्ट करने वाले और सरकारी टेंडर भरकर आर्डर लेने वाले उद्योगपतियो को भारी नुकसान हो रहा है।
इसलिए सरकार को प्रयास करने चाहिए। क्योंकि केवल अमृतसर से ही 100 से ज्यादा देशों को दवाइया सप्लाई हो रही हैं। 1990 के बाद चीन पर निर्भर हुआ भारत का फार्मा उद्योग
1990 तक देश में रा मटीरियल तैयार करने वाले बहुत सारे यूनिट थे। 1992 में चीन से एक समझौता हुआ। उसी समझौते के बाद चीन की कंपनियों से रा मटीरियल आना शुरू हुआ। यह मटीरियल भारत के मुकाबले आधे दाम पर मिलता था। इससे भारतीय फार्मा इंडस्ट्री पूरी तरह चीन निर्भर हो गई। इस तरह समझें कितने बढ़े दाम
डिसप्रिन दस गोलियों का रैपर पहले छह रुपये में मिलता था। अब बढ़कर 11 रुपये हो गया। इसी तरह पैरासिटामोल का एक पत्ता पहले नौ रुपये में आता था। अब 12 रुपये एमआरपी पर आ रहा है। बीपी के लिए प्रयोग होने वाला एम लोंग ए जो पहले 110 रुपये का रैपर था, अब 122 रुपये का हो गया है।
दिल के रोग संबंधी आने वाले रेमिप्रिल 129 से बढ़कर 132 एमआरपी आ रहा है। फोरमोनाइड 400 इनहेलर पहले 372 रुपये एमआरपी था। अब 408 रुपये हो गई है। इसके अलावा दर्द निवारक साल्ट डिक्लोफिन की एमआरपी 70 रुपये से बढ़कर 77 रुपये हो गई है।
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