Last Updated on September 17, 2022 by The Health Master
वेदों में मनोवैज्ञानिक रोगों का निदान
आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है। कुछ वर्षों पहले तक शारीरिक रोगों की शिक्षा ग्रहण करने में चिकित्सकों का ध्यान अधिक था जबकि वर्तमान में स्थिति बदल रही है।
शारीरिक रोगों के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य संबधित बीमारियों से मनुष्य पीड़ित दिख रहा हैं। जैसे जैसे मनुष्य आर्थिक रूप से सबल और सक्षम होता जा रहा हैं। उसके मानसिक रोग बढ़ते जा रहे है।
प्राचीन काल में ऋषि-मुनि वर्षों तक ईश्वरीय ज्ञान वेदों पर चिंतन मनन कर मनुष्यों के कल्याणार्थ उपदेश देते थे। उनके उपदेशों में जीवन के उद्देश्य से लेकर जीवन से सम्बंधित समस्याओं के निवारण के सूत्र समाहित होते थे।
वेदों में अनेक मन्त्र मनोरोग की चिकित्सा अंग्रेजी में कहावत Prevention is better than cure अर्थात -‘रोकथाम ईलाज से बेहतर है’ के सिद्धांत का पालन करते हुए करते हैं।
मानसिक रोगों की उत्पत्ति में मनुष्य की प्रवृतियां जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या-द्वेष, अहंकार आदि का प्रमुख योगदान हैं।
प्रारम्भ में आंशिक रूप से उत्पन्न हुई प्रवृतियां कालांतर में मनुष्यों को मानसिक रोगों की ओर धकेल देती हैं। वेदों की उदात्त भावनाएं और सूक्षम सन्देश मनुष्य के चिंतन पर सकारात्मक प्रभाव डाल कर उसकी इन रोगों से कुशल रक्षा करते हैं।
इन संदेशों पर आचरण करने वाला इन रोगों से कभी ग्रसित नहीं होता। इस लेख में कुछ उदहारण के माध्यम से समझते हैं।
Mental Health
1. ईर्ष्या त्याग
अथर्ववेद 6/18/1-3 मन्त्रों में आया है कि मनुष्यों दूसरों की उन्नति देखकर कभी ईर्ष्या न करे।
जैसे भूमि ऊसर हो जाने से उपजाऊ नहीं रहती और जैसे मृतक प्राणी का मन कुछ नहीं कर सकता, वैसे ही ईर्ष्या करने वाला जल-भुनकर ईर्ष्या हीन हो जाता हैं।
ईर्ष्या-द्वेष न करे अपितु पुरुषार्थ से उन्नति करे। ईर्ष्यालु व्यक्ति मनरोगों का घर होता है।
2. दुर्व्यसन त्याग
अथर्ववेद 8/4/22 मन्त्र में पशुओं के व्यवहार के उदाहरण देकर दुर्व्यसन के त्याग की प्रेरणा दी गई है।
मनुष्यों को उल्लू के समान अन्धकार में रहने वाला नहीं होना चाहिए, कुत्ते के समान क्रोधी और सजातीय से जलने वाला नहीं होना चाहिए, हंस के समान कामी नहीं होना चाहिए, गरुड़ के समान घमण्डी नहीं होना चाहिए, गिद्ध के समान लालची नहीं होना चाहिए। दुर्व्यसन मनोरोग की नींव हैं।
3. ईर्ष्या की औषधि
अथर्ववेद 7/45/1-2 मन्त्र में ईर्ष्या की औषधि का वर्णन है। जिस प्रकार से वन में लगी आग पहले वन को ही नष्ट कर देती है। उसी प्रकार ईर्ष्या रूपी अग्नि मनुष्य को अंदर से भस्म कर देती हैं।
जिस प्रकार से वर्षा रूपी जल वन की अग्नि को समाप्त कर देता है उसी प्रकार से विवेकरूपी जल ईर्ष्या को समाप्त कर देता हैं।
यह विवेक रूपी जल है सज्जनों का संग। सज्जनों की संगती से सदविचारों का ग्रहण होता है। जिससे मनुष्य विचारों में निष्पक्षता और सत्यता ग्रहण कर ईर्ष्या रूपी व्याधि से अपनी रक्षा कर पता हैं।
4. मधुर वाणी बोलें
अथर्ववेद 12/1/48 में आया है कि हम सदा मधुर वाणी बोलें, सत्य, प्रिय एवं हितकर वाणी बोलें। सभी के लिए प्रेमपूर्वक व्यवहार करे। वैर, विरोध, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध अदि भावनाओं को मार भगाये।
दृढ़ संकल्प लिया हुआ व्यक्ति कभी मनोरोगी नहीं होगा। पहाड़ के समान दुःख को भी वह झेल जायेगा।
येँ भी पढ़ें : ICMR का डाइट चार्ट, जानें क्या क्या है शामिल
5. श्रेष्ठ धन
ऋग्वेद 2/21/6 में सन्देश आया है कि हे ईश्वर हमें श्रेष्ठ धन दीजिये। यह श्रेष्ठ धन क्या है? यह श्रेष्ठ है ईमानदारी का धन। यह धन सदा सुख देता है।
धन की तीन ही गति है। दान, भोग और नाश। वेद विरुद्ध माध्यमों से प्राप्त धन व्यक्ति का नाश कर देता है।
भ्रष्टाचार से प्राप्त धन स्वयं व्यक्ति और उसकी संतान का नाश कर देता हैं और मानसिक रोगों की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। अपने किये गए पाप कर्मों के फलों से ग्रसित होकर व्यक्ति मनोरोगी बन जाता हैं।
6. त्याग की भावना
यजुर्वेद 40/1 का प्रसिद्द मन्त्र ‘ई॒शा वा॒स्यमि॒दं’ का सन्देश है कि हे मनुष्य जगत का रचियता और स्वामी ईश्वर सब ओर विद्यमान है और तुम त्याग की भावना से इस संसार के पदार्थों का भोग कर। इस भावना से प्रकाशित व्यक्ति कभी अवसाद आदि मनोरोग से ग्रसित नहीं होता।
7. आत्मा को बल देने वाला
यजुर्वेद 25/13 मन्त्र में आया है कि ईश्वर आत्मज्ञान का दाता, शरीर, आत्मा और समाज के बल का देनेहारा हैं। आस्तिक व्यक्ति ईश्वर विश्वास के बल पर श्रेष्ठ कार्य करते हुए संध्या उपासना रूपी भक्ति द्वारा अपनी आत्मा को बलवती करते हुए संसार में सुख होता हैं। यही ईश्वर विश्वास मनुष्यों को अवसाद आदि मनोरोग से बचाता हैं।
8. यजुर्वेद
यजुर्वेद 34/1-6 मन्त्रों को शिवसंकल्प मन्त्रों का सूक्त कहा जाता है। इन मन्त्रों में मनुष्य ईश्वर से प्रार्थना करता है कि हे ईश्वर हमारा मन नित्य शुभ संकल्प वाला हो। सोते-जागते यह सदा शुभ संकल्प वाला हो।
अशुभ व्यवहार को छोड़ शुभ व्यवहार में हमारा मन प्रवृत्त हो।
इस लेख में वेदों के कुछ मन्त्रों के उदहारण मैंने दिए हैं। वेदों में कई सौ मन्त्रों में मनुष्यों के कल्याणार्थ मानसिक रोगों से निवृति करने का उपदेश दिया गया हैं।
जिन पर आचरण करने से मनुष्य समाज के मानसिक स्वस्थ्य की रक्षा की जा सकती हैं। वेद वाणी सभी का कल्याण करे।
लेखक – डॉ विवेक आर्य, शिशु रोग विशेषज्ञ, दिल्ली
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार केवल लेखक के हैं। TheHealthMaster.com प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी व्यक्ति / संगठन को हुए किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा।
For informative videos on consumer awareness, click on the below YouTube icon:
For informative videos by The Health Master, click on the below YouTube icon:
For informative videos on Medical Store / Pharmacy, click on the below YouTube icon:
For informative videos on the news regarding Pharma / Medical Devices / Cosmetics / Homoeopathy etc., click on the below YouTube icon:
For informative videos on consumer awareness, click on the below YouTube icon: