वैकल्पिक मीट: बिना जानवरों वाला: कैसा होगा, जानिये

Alternative Meats: Without Animals: Know How

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वैकल्पिक मीट: बिना जानवरों वाला: कैसा होगा, जानिये

Last Updated on November 23, 2022 by The Health Master

सिंगापुर की आबादी अब जानवरों को मारे बिना मांस का लुत्फ ले सकेगी. ये लैब में बना मीट होगा, जिसे क्लीन मीट कहा जा रहा है.

सिंगापुर की इस पहल से दुनियाभर में वैकल्पिक मीट मार्केट के रास्ते खुल सकते हैं. और वे लोग भी मांसाहार शुरू कर सकते हैं, जिन्होंने पर्यावरण के नाम पर इससे दूरी बना ली थी.

क्या है ये मामला

अमेरिकी कंपनी ‘जस्ट ईट’ सिंगापुर के लिए मांस तैयार करने जा रही है. ये मीट लैब में बना होने के कारण जानवरों को मारने जैसी हिंसा की जरूरत भी नहीं होगी और लोग अपनी पसंद का खाना खा सकेंगे.

लेकिन ऐसा कैसे होगा कि जानवरों को मारे बिना मीट मिल सके? तो कंपनी के पास इसका भी जवाब है.

इसके लिए 1200 लीटर के बायोरिएक्टर में एनिमल सेल्स यानी कोशिकाओं को तैयार किया जाएगा और फिर इसमें पौधों से जुड़े तत्व मिलाए जाएंगे.

उत्पाद को बनाने के लिए जरूरी एनिमल सेल्स (कोशिकाएं) सेल बैंक से ली जाएंगी और इसके लिए किसी जानवर की हत्या करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. ये सेल्स जिंदा जानवरों की बायोप्सीज से ली जा सकेंगी.

ये खाने में बिल्कुल असल मीट जैसा होगा. चूंकि इसके लिए जानवरों को मारना या पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है, इसलिए इसे क्लीन मीट भी कहा जा रहा है.

चूंकि फिलहाल काम की शुरुआत है इसलिए वैकल्पिक मांस काफी कीमत का होगा और इसका स्टॉक भी सीमित होगा लेकिन जैसे-जैसे लोगों में जानवरों पर हिंसा और पर्यावरण को लेकर जागरुकता आएगी, माना जा रहा है कि इस मांस की मांग बढ़ेगी.

क्या है मीट का पर्यावरण से संबंध

मांस खाने से पर्यावरण की सेहत सीधे प्रभावित होती है. वैज्ञानिक कहते हैं कि मीट की खपत घटाने पर क्लाइमेट चेंज पर लगाम रखी जा सकती है.

इसे इस तरह से समझें कि दुनिया भर में व्यावसायिक तौर पर मवेशी और दूसरे जीवों को पाला जा रहा है ताकि दूध, ऊन जैसी जरूरतों के अलावा सबसे बड़ी जरूरत, मीट की जरूरत पूरी हो सके.

लेकिन उनकी जुगाली, उनके मल और उन्हें खाने के लिए दी जाने वाली चीजों के चलते सालाना 14 प्रतिशत उत्सर्जन बढ़ा.

यहां तक कि जानवरों से जुड़ा उद्योग सबसे बड़ी तेल कंपनियों से भी ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहा है. इसमें कार्बन डाइऑक्साइड से भी ज्यादा खतरनाक मीथेन गैस भी शामिल है.


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येल यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में शाकाहार के फायदे गिनाते हुए कई दिलचस्प आंकड़े दिए गए.

जैसे दुनिया में सबसे ज्यादा मीट खाने वाले दो अरब लोग शाकाहार खाने की तरफ रुख कर लें तो इससे भारत से दोगुने आकार वाले इलाके को बचाया जा सकता है.

ये काफी बड़ी बात होगी. इस इलाके को खेती के काम ला सकते हैं ताकि लोगों का पेट भरा जा सके.

बीफ के बारे में भी खूब बात हो रही है. बता दें कि एक किलोग्राम बीफ तैयार करने के लिए आम तौर पर 25 किलो अनाज और 15 हजार लीटर पानी लगता है.

इधर लैब में तैयार मीट के पक्ष में कई बातें हो रही हैं. मिसाल के तौर पर इस मीट की तरफदारी करने वालों का कहना है कि लैब मीट में पोषक तत्‍वों को शामिल करके तमाम रोगों के जोखिम को कम किया जा सकता है.

अक्सर मीट में सैचुरेटेड फैट होता है लेकिन लैब में बने मीट में उसकी जगह ओमेगा 3 फैटी एसिड और हेल्‍दी फैट डाले जा सकते हैं.

ये सेहत के लिए बढ़िया होगा. साथ ही जानवरों से मीट तैयार करने की प्रक्रिया में होने वाली प्रदूषण पर सीधी रोक लगेगी.

हालांकि एक तबका लैब में तैयार मीट का विरोध भी कर रहा है. उसका कहना है कि जेनेटिकली मॉडिफाइड या फिर कृत्रिम होने के कारण ये शरीर में कई नई बीमारियों का कारण बन सकता है.

साथ ही मांसाहार के कारण फैलने वाली बीमारियों जैसे स्वाइन फ्लू या फिर कोरोना वायरस जैसी बीमारियों पर भी काफी हद तक कंट्रोल पाया जा सकेगा.

बढ़े हैं शाकाहारी

पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर भरोसा करें तो दुनिया में शाकाहारियों की तादाद बढ़ी है. लोग इसे तेजी से अपना रहे हैं. ये आंदोलन का रूप ले रहा है, जिसे काफी पसंद भी किया जा रहा है.

यहां तक कि वीनग डायट के प्रति भी रुझान बढ़ा है. यानी मीट के अलावा दूध या इससे बने उत्पाद न खाने वाले लोगों की भी एक बिरादरी बन रही है, जो शाहाकार से भी एक कदम आगे हैं.

इसे vegan movement कहते हैं. गूगल ट्रेंड्स का सर्च डाटा कहता है कि साल 2014 से 2018 के बीच दुनियाभर में असरदार तरीके से शाकाहार की ओर लोगों का रुझान बढा है.

इजराइल, आस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया, कनाडा और न्यूजीलैंड में शाकाहारी बढ़ रहे हैं.


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