Last Updated on January 14, 2024 by The Health Master
लैब में बनाया Artificial खून
वैज्ञानिकों ने लैब (Laboratory) में ही ऐसा खून तैयार कर लिया है, जो ना सिर्फ मरीजों की जान बचाने के काम आएगा बल्कि मेडिकल साइंस की दुनिया में किसी नई क्रांति से कम साबित नहीं होगा.
लैब में तैयार हुए इस खून का अभी पहला क्लिनिकल ट्रायल (Clinical Trial) किया जा रहा है.
लैब में बने Artificial खून का क्लिनिकल ट्रायल
खून को लेकर वैज्ञानिकों की नई खोज किसी जादू से कम नहीं है. दुनिया में पहली बार दो लोगों को लैब में बनाया गया artificial खून चढ़ाया गया है.
हालांकि, यह लैब में तैयार हुए खून का पहला क्लिनिकल ट्रायल है, जो सफल रहा तो खून से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए संजीवनी का काम करेगा.
खासतौर पर उन लोगों के लिए काफी ज्यादा कारगार साबित होगा, जिनका ब्लड ग्रुप दुर्लभ होता है. दुर्लभ ब्लड ग्रुप वालों को आसानी से खून नहीं मिल पाता है, जिस वजह से कई बार मरीज की जान भी चली जाती है.
लैब में ऐसे बना Artificial खून
न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, वैज्ञानिकों ने लैब में इस खून को बनाने में ब्लड डॉनर्स की मूल कोशिकाएं (Stem Cells) इस्तेमाल में लीं.
खून को तैयार करने के बाद पहले ट्रायल के तौर पर दो वालंटियरों को मात्र 5 से 10 एमएल खून ही चढ़ाया गया है. ट्रायल के जरिए लैब में तैयार हुई ब्लड सेल्स को लेकर जानकारियां जुटाई जाएंगी.
वैज्ञानिकों को ऐसी आशा है कि लैब में तैयार हुए ब्लड सेल्स सामान्य रेड सेल्स से ज्यादा अच्छा काम करेंगे.
पहली बार लैब में तैयार हुआ खून इंसानों में चढ़ाया गया
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल में प्रोफेसर और एनआईएचआर ब्लड एंड ट्रांसप्लांट की डायरेक्टर एशले टोय ने इस बारे में कहा कि स्टेम सेल्स को ब्लड सेल्स में तब्दील करने की ओर यह ट्रायल एक बड़ा कदम होगा.
प्रोफेसर एशले ने आगे कहा कि यह पहली बार है, जब लैब में तैयार खून किसी इंसान को चढ़ाया गया है. प्रोफेसर ने आगे कहा कि हम देखने के लिए उत्साहित हैं कि ट्रायल के अंत तक सभी सेल्स कितना कामगार होंगे.
अभी तक कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं
वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन दो मरीजों को यह खून चढ़ाया गया है, उनका काफी ध्यान रखा जा रहा है.
अभी तक किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट नहीं देखा गया है. दोनों लोग पूरी तरह स्वस्थ्य हैं और अच्छा कर रहे हैं.
NHSBT से जुड़े रक्तदाताओं का खून इस रिसर्च के लिए लिया गया. खून लेने के बाद लैब में उनके खून से स्टेम सेल्स को अलग कर दिया गया.
बाद में जिन लोगों को यह खून चढ़ाया गया, वे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड केयर रिसर्च (NIHR) बायोरिसोर्स के स्वस्थ्य सदस्य हैं.
क्लिनिकल टेस्ट के लिए कम से कम चार महीनों में 10 लोगों को दो बार खून चढ़ाया जाएगा. इनमें एक तरह का खून सामान्य रेड सेल्स से बना होगा और दूसरा लैब में बनाया खून होगा.
ट्रायल कामयाब हुआ तो मेडिकल साइंस के लिए होगी बड़ी उपलब्धि
अगर दुनिया का यह पहला ट्रायल कामयाब रहा तो इसका मतलब होगा कि जिन मरीजों को लंबे समय तक खून बदलने की जरूरत पड़ती है, उन्हें लैब में बने खून चढ़ाने के बाद भविष्य में कम ब्लड की जरूरत होगी.
हालांकि, अभी इस खून को आम मरीजों तक पहुंचने में थोड़ा समय लग सकता है. दरअसल, अभी इसका पहला ही क्लिनिकल ट्रायल हुआ है और अभी काफी संख्या में ट्रायल और भी किए जाएंगे, जिससे वैज्ञानिक एक निष्कर्ष तक पहुंच सकें.
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